खमियव्वं खमावियव्वं, जोउवसमइ
तस्स अत्थि आराहण,
जो न उवसमइ तस्स णत्थि आराहण।
क्षमा मांगनी चाहिए,
क्षमा देनी चाहिए, जो क्रोध, अभिमान, कपट, लोभ
व राग-द्वेष को शान्त कर क्षमा-याचना करता है, उसी की आराधना सार्थक होती है
और जो ऐसा नहीं करता उसकी सारी साधना-आराधना निरर्थक हो जाती है. -भगवान महावीर
(कल्पसूत्र 1/35)
इमेण चेव जुज्झाहि, किं
ते जुज्झेण बज्झओ।
अपने आन्तरिक विकारों से ही युद्ध करो, किसी अन्य से लडने से तुम्हें
क्या मिलेगा?
-भगवान महावीर (आचारांग सूत्र 1/5/3)
सरिसो होइ बालाणं
बुरे के साथ बुरा बनना,
बचकानापन है. -भगवान महावीर (उत्तराध्ययन सूत्र 2/24)
खमावणयाए ण्ं पल्हायणभावं
जाणयइ।
क्षमापना से आत्मा में प्रसन्नता की अनुभूति होती है. -भगवान महावीर
(उत्तराध्ययन सूत्र 29/17)
योस्मान् द्वेष्ठि तमात्मा
द्वेष्टु।
जो किसी से द्वेष करता है, वह अपनी आत्मा से ही द्वेष कर रहा है. (अथर्ववेदः16/7/5)
उद्वरेदात्मनात्मानं, नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव हृयात्मनो,
बन्धरात्मैव रिपुरात्मनः।।
स्वयं ही अपना उद्धार करो. स्वयं स्वयं को नीचे मत गिराओ. क्योंकि हम स्वयं ही
स्वयं के मित्र हैं. और स्वयं ही स्वयं के शत्रु, -योगीश्वर श्री कृष्ण (भगवद्गीताः
6/8)
क्षमा गुणोहृयशक्तानां, शक्तानां
भूषणं क्षमा।
क्षमा असमर्थ मनुष्यों का गुण है और समर्थों का भूषण है. -वेदव्यास (महाभारत,
उद्योगपर्वः 33/49)
आत्मा वै प्राणिनां प्रेष्ठः।
जो किसी के साथ वैर-भाव रखता है, उसके मन को कभी शान्ति नहीं
मिल पाती. -वेदव्यास (विष्णुपुराणः 10/80/40)
अच्चयं देसयन्तीनं, यो
चे न पटिगण्हति। कोयंतरो दोसगुरू, स वेरं पटिमुण्चति।।
अपराध स्वीकार करनेवालों को जो क्षमा नहीं करता, वह भीतर ही भीतर क्रोध
रखनेवाला महाद्वेषी,
वैर को और अधिक बांध लेता है. -महात्मा
गौतमबुद्ध(संयुत्तनिकायः 1/1/35)
द्वेवे, भिक्खवे, बाला।
यो च अच्चयं अच्चयतो न पस्सति। यो च अच्चयं देसें तस्य, यथाधम्मं
नप्पटिग्गण्हाति।
भिक्षुओं! मूर्ख दो प्रकार के होते हैं, एक वे जो अपने अपराध को अपराध के रूप
में नहीं देखते,
और दूसरे वे जो दूसरों द्वारा अपराध स्वीकार कर लेने पर भी
उन्हें क्षमा नहीं करते. -महात्मा गौतमबुद्ध (संयुत्तनिकायः 1/11/24)
नही वेरेण वेराणि, सम्मन्तीध
कुदाचनं। अवेरेण च सम्मन्ती, एस धम्मो सनन्तनो।
वैर से वैर कभी शान्त नहीं होता, सिर्फ प्रेम से ही वैर शांत
होता है, यही शाश्वत नियम है. -महात्मा गौतमबुद्ध (सुत्तपिटक, धम्मपदः
1/5)
क्षान्त्या शुद्ध्यन्ति
विद्वांसः।
विद्वान् क्षमा-भाव से ही पवित्र बनते हैं. -मनुस्मृतिः 6/107
मरणान्तानि वैराणि।
हम चाहें तो वैर-विरोध मरते दम तक भी रख सकते हैं. -ऋषि वालिमकि (रामायण, उत्तरकाण्डः
110/26)
जो वक्त पर धैर्य रखे और
क्षमा कर दे,
तो निश्चय ही यह बडे साहस के कामों में से एक है. -हजरत
मुहम्मद पैगम्बर (कुरान शरीफः 42/43)
क्षमा करने की आदत डाल, नेकी
का हुक्म देता जा और जाहिलों से दूर रह. -हजरत मुहम्मद पैगम्बर (कुरान
शरीफः 7/199)
जो गुस्सा पी जाते हैं और
लोगों को माफ कर देते हैं,
अल्लाह ऐसी नेकी करनेवालों को प्यार करता है. -हजरत मुहम्मद
पैगम्बर (कुरान शरीफः 3/134)
अपने शत्रुओं से प्रेम रखो और
जो तुम्हें सताता है,
उसके लिए प्रार्थना करो. -बाइबिल, नया
नियम (मत्तीः 5/44)
वैरी से मत हारो, बल्कि क्षमा
से वैरी को जीत लो. -बाइबिल, नया नियम (रोमियों: 12/21)
प्रार्थना में यदि किसी के
प्रति तुम्हारे मन में कोई विरोध खड़ा हो, तो तत्काल क्षमापना कर दो, अन्यथा
परम पिता तुम्हें क्षमा नहीं करेगा. -बाइबिल, नया नियम (मरकुसः 11/25-26)
हे पिता! इन्हें क्षमा करना, क्योंकि
ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं. -बाइबिल, नया नियम (लूकाः23/24)
यदि कोई दुर्बल मनुष्य
तुम्हारा अपमान करता है, तो उसे क्षमा कर दो, क्योंकि क्षमा करना वीरों का
काम है. -गुरू गोविन्दसिंह
परदेशी से भी प्रेम कर, अपने
मन में किसी के प्रति वैर या दुश्मनी का भाव मत रख. -यहूदी धर्म प्रवर्तकः यहोवा
(लैब्य-व्यवस्थाः 19/17)
यदि तुम्हारा शत्रु तुम्हें
मारने आए और वह भूखा-प्यासा तुम्हारे घर पहुंचे, तो तुम उसे खाना दो, पानी
दो. -यहूदी धर्म प्रवर्तकः यहोवा (नितिः 25/21 मिदराश)
मन से सदैव यही सोचो कि सभी
मेरे भाई हैं और उनके प्रति मैंने किसी भी तरह का कोई अपराध किया हो, तो
प्रभु मुझे क्षमा करो. -पारसी धर्म प्रवर्तक जरथुश्त्र (पहेलवी टेक्स्ट्स)
अवरद्धेसु वि खमिउं, सुयणोच्चिय
नवरि जाणेइ।
अपने प्रति किये अपराधों को भी क्षमा करना केवल सज्जन ही जानता है. -महाकवि
हाल (वज्जालग्गं: 44)
जग में बेरी कोई नहीं, जो
मन शीतल होय,
तुलसी इतना याद रख, दया करे सब कोय. -संत
तुलसीदास
जिस मनुष्य के हाथ में
क्षमारूपी शस्त्र हो,
उसका दुष्ट क्या बिगाड़ सकता है? यदि दावाग्नि
में तृण न पड़े,
तो वह स्वयं ही बुझ जाती है. -संत तुकाराम (तुकाराम अभंग
गाथा, 3995)
जो अपने दुश्मनों को क्षमा कर
देते हैं, वे स्वर्ण की तरह बहुमूल्य समझे जाते हैं. -संत तिरूवल्लुवर
क्षमा ही मूलं सर्वतपसाम्।
क्षमा सभी तपस्याओं का मूल है. -बाणभट्ट (हर्षचरितः 12)
संसार में ऐसे अपराध कम नहीं
हैं कि जिन्हें हम चाहें और क्षमा न कर सकें. -शरतचंद्र चट्टोपाध्याय (गृहदाह, पृष्ठ-261)
रोक लो गर गलत चले कोई, बख्श
दो गर खता करे कोई. -गालीब (दीवान)
दण्ड देने की शक्ति होने पर
भी दण्ड न देना सच्ची क्षमा है. -महात्मा गांधी सर्वोदय, 98
क्षमा पर मनुष्य का अधिकार है, वह
पशु के पास नहीं मिल सकती. -जयशंकर प्रसाद (स्कंदगुप्त, द्वितीय
अंक)
क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके
पास गरल हो. उसको क्या,
जो दंतहीन, विषरहित, विनीत, सरल
हो? -रामधारीसिंह ‘दिनकर’ (कुरूक्षेत्र,
तृतीय सर्ग)
खुशी
देना जमाने को,
मुझे हर दम रूदन देना,
अन्य
को देना गुलशन,
मुझे वीरान वन देना ।
जमाने
के सभी पुण्य,
जमाने को मुबारक हो;
मैं
देखूं अपने पाप को,
मुझे ऐसे नयन देना ।।
संदेश
श्रमण
भगवान महावीर स्वामी ने क्षमा को धर्म का मूल कहा है और श्रीकृष्ण ने इसे धर्म की
स्थापना का कारक माना है. शत्रुता को मन में रखकर धर्म-उपासना करने का तो अर्थ हैः
व्यर्थ की कसरत करना. भूल तो हर किसी से हो सकती है और मैत्री संबंध टूट सकते हैं, पर
शत्रुता को कब तक जिन्दा रखेंगे ? कहीं ऐसा न हो कि हम शत्रुता को मन में
रखे हुए ही इस दुनिया से विदा हो जाएं ! अगर ऐसा हो गया तो यह मनुष्य जीवन की सबसे
बडी दुर्घटना होगी. क्षमापना एकमात्र विकल्प है इस दुर्घटना को रोकने का !!
अंतर
स्वर
प्रत्येक शून्य का अपना महत्व है, पर बिना अंक के उसका
मूल्यांकन नहीं होता,
अंक शून्य से पहले लगकर दो काम करता है - खुद का मूल्यांकन
तो बढाता ही है,
शून्य की महत्ता भी वह स्थापित करता है. यूं देखें तो अकेले
शून्यों की कोई कीमत नर्ही है, पर अंक के साथ मिल जाने पर हर शून्य की
अपनी कीमत बढती चली जाती है. क्षमा अंक है और शेष सारी सत्प्रवृत्तियां जैसे कि
पूजा-अर्चना,
तप-जप, सेवा-सुश्रुषा, दान-पुण्य
इत्यादि शून्यों के बराबर है. इन धर्म-प्रवृतियों की चाहे जितनी संख्या हो, क्षमा-रहित
इनका कोई मूल्य नहीं होता,
किन्तु क्षमा के साथ जब भी ये सत्प्रवृत्तियां आचरित होती
हैं; इनमें से हर एक की कीमत बढती चली जाती है. यही उपादेय है कि हम शून्यों के मूल्यांकन को सिद्ध करने व बढाने के लिए शून्यों से पहले अंक को
रखें. क्षमा के अभाव में जो कुछ भी किया जाएगा, वह निष्प्राण होगा. क्षमा ही
धर्म और सदाचरण का प्राण है.
और
अन्त में...
खमिअ
खमाविअ मई खमह,
सव्वह जीवनिकाय; सिद्वह-साख आलोयणह, मुज्झह वइर न भाव।। जं जं मणेण बद्धं, जं
जं वाएण भासिअं पावं; जं जं काएण कयं, मिच्छा मि दुक्कडं तस्स।।
मैं
सभी को क्षमा करता हूं,
सभी मुझे क्षमा करें. सिद्धात्माओं की साक्षी में मैं प्रायश्चित
करता हूं कि मेरा किसी से वैर-भाव नहीं है. जो-जो पाप मैंने मन से बांधे हों, जो-जो
दुर्वचन वाणि से उच्चारित किये हों, उन सभी की मैं क्षमायाचना
करता हूं... -जैन संथारा पोरिसी सूत्र (15 व 17)
बटन
शर्ट
का यह छोटा सा गोल बटन बन सकता है अनमोल। बटन सिर्फ एक दिखावा नहीं है। उसमें अनेक
गुण भी हैं। वह बांधता है। सकारात्मक और रचनात्मक जोड़ देता है। शून्य से सृजन करता
है। बटन हमें अपने भेदभाव,
मत-मतान्तर भूलाकर एक मजबूत जोड़ बनाने की प्रेरणा देता है।
मनुष्य क्षमारूपी बटन के साथ ही जन्म लेता है, लेकिन वह हमारे अहम् और
अहंकार के तले कहीं छिप गया है। जरूरत है उसे ढूंढने की। उसे खोजो, जागृत
करो और परिपूर्ण करो। अनुभव होगा कि सारा विश्व एक है, अपना
है। जरा सोचिए। बटन बिना हमारा वस्त्र ! क्षमा बिना हमारा जीवन ! हम आपको इस क्षमापना
पर्व में आमंत्रित करते हैं। कबः आज और 24×7 ! समयः
अभी और कभी भी। स्थानः कहीं पर भी और सभी जगह पर। आओ, क्षमा
को जीवन का बटन बनायें ! ऐसी ‘अनुभूति’ के साथ
सांवत्सरिक-क्षमापना के पावन अवसर पर हम आपसे विनम्रतापूर्वक क्षमायाचना करते हैं।
‘मिच्छामि दुक्कडम्’
विनम्र
नीम महान गुरु है !
इसमें
संसार की कुछ जटिलताओं को सुलझाने की कुंजी समायी हुई है। स्वास्थ्य से स्वर्ग तक !
नीम के कडवे स्वाद में छिपे हैं अमूल्य औषधिगुण, जो इसे चबा सकते हैं
वो ही नीम के गुणों का लाभ प्राप्त करते हैं। नीम की कडवाहट हमारे कठिन संघर्ष का
प्रतीक है, जिसमें छिपे हैं मीठे फल। अपनी गलतियों को स्वीकार करना और दूसरे की गलतियों
को क्षमा करना बहुधा कडवा घूंट पीने के समान है, इससे शरीर एवं आत्मा शुद्ध और
पवित्र होती है।
सच्ची
सफाई
झाडू
सफाई करता है। धूल,
कचरा और गंदगी दूर करता है। दूसरों को साफ रखने के लिए खुद को
गंदा करता है। और फिरसे सफाई करने के लिए अपने आपको झटक के तैयार करता है-बारबार !
मन और हृदय की सफाई का काम करती है क्षमा। पक्षपात, पूर्वाग्रह और द्वेष से
मुक्त करती है क्षमा। प्रेम और अंतर की भावनाओं को जागृत करती है क्षमा। सीधे सादे, फिर
भी मूल्यवान क्षमारूपी झाडू से हम भी हमारे मन और हृदय साफ करें -बारबार ! आओ, क्षमा
को जीवन का झाडू बनायें! ऐसी ‘सफाई’ के साथ सांवत्सरिक-क्षमापना
के पावन अवसर पर हम आपसे विनम्रतापूर्वक क्षमायाचना करते हैं। ‘मिच्छामि
दुक्कडम्’
।।शुद्धिकरणम्।।
फिल्टर
अलग-अलग करता है शुद्ध-अशुद्ध, गुणकारक-हानिकारक,
अच्छा-बुरा किन्तु,
सिर्फ एक ही दिशा में। सिर्फ, हमारे मन और हृदय का
फिल्टर ही दोनों दिशाओं में शुद्धिकरण कर सकता है। हम जो प्राप्त करते हैं उसे ही नहीं, बल्कि
हमारे विचार,
वाणी और कर्म को भी शुद्ध करता है। हम, इस
अदभुत मानव फिल्टर को क्षमा मांगने और क्षमा देने से जागृत रख सकते हैं। ऐसे ‘‘फिल्टरड्’ विचारों
के साथ, संवत्सरी के अवसर पर हम विनम्रपूर्वक ‘‘मिच्छामि दुक्कडम’’ कह
कर क्षमाचायना करते हैं।
माचिस
की तीलीका
आओ
सोचें! माचिस की तीलीका के सिर तो है मगर मस्तिष्क नहीं। इसलिए जरा सी रगड़ खाते ही
भड़क उठती है चिनगारी में,
और कर सकती है विध्वंस। इससे सबक लें। आवेश में आकर कभी
संतुलन न खोएं। क्योंकि ईश्वर ने हमें सिर और मस्तिष्क दोनों दिए हैं।