मन की तृष्णा ने आज
कितना भयानक आतंक फैलाया है? पिता-पुत्र, पति-पत्नी, बडा भाई-छोटा भाई, सास-बहू इन सब लोगों के बीच का
व्यवहार देखो। जरा सोचो तो सही एक दूसरे के लिए कितनी ईर्ष्या, द्वेष-भावना दिल में भरी हुई है? मन की तृष्णा बढी है। पर-वस्तुओं
को प्राप्त करने की व भोगने की लालसा बढी है और त्याग-भावना नष्टप्रायः हो गई है।
इसके परिणामस्वरूप आज के संसार में भयानक भगदड और भागदौड मच रही है। लोग भौतिकता
की चकाचौंध में अंधे हो गए हैं।
जब तक मन की भयानक भूख
नहीं मिटेगी और त्याग की भावना पैदा नहीं होगी, तब तक ऐसी भगदड और भागदौड मची रहेगी, इसमें कुछ भी आश्चर्य नहीं है। इस
तरह विचार किया जाए तो अवश्य समझ में आएगा कि मन की भौतिक भूख ही सारे विनाश का
कारण है। आज सभी तरफ अधिक से अधिक धन कमाने की होड मची हुई है, येन-केन-प्रकारेण जल्दी से जल्दी
इतना धन कमाना कि कोई प्रतिस्पर्द्धा में अपने सामने न टिके। बस, यही धुन सवार है। नीति से कमाया
हुआ धन भले ही अच्छा माना जाए, परन्तु धन तो वास्तव में खराब ही है, क्योंकि यह प्रायः तृष्णा को जगाता ही है। और जो धन का बन जाता है, वह बाप का नहीं रहता, मां का नहीं रहता, भाई का नहीं रहता, पुत्र का नहीं रहता, पुत्री का नहीं रहता; वास्तव में फिर वह किसी का नहीं
रहता। धन ही उसके लिए सबकुछ होता है। वह धन के नशे में पागल हो जाता है, बेभान हो जाता है।
आज आप लोगों के घरों
में बुजुर्गों की स्थिति ऐसी हो गई है कि ‘जो कमावे, वह खावे और दूसरा मांगे तो मार खावे’। ऐसी स्थिति हो जाने के कारण ही
इस देश में वृद्धाश्रम या विधवाश्रम की बातें चलने लगी हैं। ऐसे आश्रम स्थापित हों, यह कोई गौरव की बात नहीं है; अपितु उन बुजुर्गों और विधवाओं के
परिवारों के लिए तथा समाज और संस्कृति के लिए शर्म की बात है।
आपसे मेरा पहला प्रश्न
यह है कि आपका राग आप के माता-पिता पर अधिक है या पत्नी-बच्चों पर अधिक है? भगवान पर राग होने का दावा करने
वाले को मेरा यह महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। योग की भूमिका में माता-पिता की पूजा
लिखी है, पत्नी-बच्चों की नहीं।
मुझे तो ऐसा महसूस होता है कि आज के लोगों को कम से कम कीमत की कोई चीज लगती हो तो
वह उसके मां-बाप हैं।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी
महाराजा