मंगलवार, 27 मार्च 2012

लोभी व्यक्ति परिताप सहता है!


जो लोभ वाला व्यक्ति है, आकांक्षा वाला व्यक्ति है, जिसके मन में अनेकों इच्छाएँ हैं, वह रात दिन परिताप को सहन करता रहता है। अनेकों संकल्प-विकल्प उसके मन में उठते रहते हैं। उसको अपने लोभ में, अपनी तृष्णा में न काल का ध्यान रहता है, न अकाल का ही ध्यान रहता है। ऐसे व्यक्ति को समय-असमय का कोई ध्यान नहीं रहता है। उसके लिए तो फिर 4 बजे भी कहीं उठकर जाना है तो जाना है और 1 बजे उठकर जाना है तो जाना है। शास्त्रकार कहते हैं कि ऐसा व्यक्ति संयोगार्थी होता है। अपने जीवन के लिए पारिवारिक जनों के लिए, बाह्य यश-प्रतिष्ठा को प्राप्त करने के लिए, वह विविध प्रकार के संयोगों को जुटाता है।

उसके मन में बस एक ही आकांक्षा होती है कि मैं कैसे अधिक से अधिक यश-प्रतिष्ठा अर्जित करूँ, कैसे देश में प्रतिष्ठित व्यक्ति बनूँ? कैसे मेरी समाज में पूछ-परख बढ जाए? ऐसी आकांक्षाएँ रखने वाला व्यक्ति फिर अर्थ का लोभी हो जाता है। रात-दिन उसका ध्यान अर्थ के प्रति लगा रहता है। उसका यही चिन्तन चलता रहता है कि कैसे मैं अधिक से अधिक धन एकत्र करूँ? भौतिक पदार्थों के प्रति ही उसका ध्यान लगा रहता है। उस अर्थ के लोभी व्यक्ति को यदि धन नहीं मिलता है तो फिर वह लूट-खसोट का काम भी करने लगता है। क्या करता है? एक दूसरे का गला काटने लगता है। ये माया के चक्कर, ये लोभ किस दृष्टि के व्यक्तियों में जागृत होते हैं, जिनका आत्मा पर ध्यान नहीं होता है। केवल जड पदार्थों के प्रति ही जिनका ध्यान लगा होता है। ऐसा व्यक्ति फिर बिना विचार किए ही कार्य करने वाला बन जाता है। फिर वह यह चिन्तन करना भी भूल जाता है कि मैं किसलिए धन को इकट्ठा कर रहा हूँ? किसके लिए धन-सम्पत्ति जुटा रहा हूँ?

जो संयम-साधना के प्रति सक्रिय होता है, उसकी जीवन-दृष्टि कुछ और ही होती है। इसके विपरीत जो लोभ के प्रति आसक्त बना होता है, उसकी जीवन-दृष्टि कुछ और ही होती है। उसके जीवन की गति ही विपरीत होती है। हम अपने अज्ञान के आवरणों को तोडें। सम्यकज्ञान का बोध हमें हो। तत्वातत्व का विवेक हमारे भीतर जागे। जन्म-मरण से बचने का प्रयास करें। मुक्ति को पाने का प्रयास हमारा बने। अन्यथा हजारों बार हम उच्चारण कर लें कि हमारा जन्म-मरण हो रहा है, हम हजारों बार जन्म-मरण कर रहे हैं। तो केवल उच्चारण करने मात्र से कुछ नहीं होता है। हमारे अन्तरंग में यह बात सम्यक रूप से बैठनी चाहिए तो जीवन की दिशा बदल सकती है। ऐसे हमारे जीवन की दिशा अगर बदलेगी, तो हमारा आत्म-कल्याण होगा।-आचार्यश्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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